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रविवार, २३ मार्च, २०२५

विधी का शासन अवधारणा Concept of Rule of Law

 

विधी का शासन अवधारणा
Concept of Rule of Law

विधी का शासन इसका मतलब व्यक्ती वा व्यक्तियों की इच्छा के स्थान पर कानून द्वारा प्रस्थापित शासन हेवार्ड के अनुसार, विधी का शासन का अर्थ निरंकुशता के स्थान पर कानून की श्रेष्ठता और सर्वोच्चता है| विधी का शासन एक राजनीतिक और कानूनी अवधारणा है। इस अवधारणा के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति और संगठन कानून के अधीन है। कानून सर्वोत्तम है. कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।"कानून के शासन" की अवधारणा फ्रांसीसी कहावत 'la principal de legalite' से ली गई है। यह कहावत व्यक्ती पर नहीं बल्कि कानून के सिद्धांतों पर आधारित सरकार को संदर्भित करती है।

विधी का शासन अवधारणा विकास-

कानून के शासन की अवधारणा पुरानी है. प्लेटो और अरस्तू जैसे यूनानी दार्शनिकों ने कानून के शासन की अवधारणा पर चर्चा की। विधी का शासन अवधारणा का जन्म और विकास ब्रिटन मे हुआ। इसका प्रयोग पहली बार 16 वीं शताब्दी में ब्रिटेन में स्कॉटिश धर्मशास्त्री सैमुअल रदरफोर्ड द्वारा राजाओं के दैवीय अधिकार के खिलाफ बहस करने के लिए किया गया था।जेम्स प्रथम के शासनकाल के दौरान मुख्य न्यायाधीश सर एडवर्ड कोक को कानून के शासन की अवधारणा का जनक माना जाता है; क्योंकि उन्होंने इस अवधारणा को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।1885 में प्रो. ए.वी. डाइसी ने कोक की इस अवधारणा को विकसित किया। ' प्रो‌. डायसी विधी के शासन के प्रबल समर्थक थे उन्होने introduction to the study of the law of constitution  (1885) पुस्तक मे इस अवधारणा के बारे मे सविस्तर विवेचन किया है.

प्रा. ए.व्ही. डायसी और विधी का शासन-

      उन्होने विधी के शासन के तीन वास्तविक अर्थ मे ब्रिटन मे मौजूद है

      सामान्य कानून की सर्वोच्चता- डाइसीने सभी प्रकार की मनमानी और विवेकाधीन शक्तियों को अस्वीकार कर दिया।किसी व्यक्ति को कानून तोड़ने के लिए दंडित किया जा सकता है, लेकिन उसे किसी अन्य चीज के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है। वेड कहते हैं, "कानून के शासन के लिए, सरकार को कानून के अधीन होना चाहिए, कानून को सरकार के अधीन नहीं होना चाहिए। देश के प्रचलित कानून में निर्विवाद सर्वोच्चता होनी चाहिए। कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।"देश मे सामान्य कानून ही सर्वोच्च होना चाहिये| कानून के उपर किसी भी स्वेच्छाचारी शक्ती का प्रभाव हो ना चाहिये| प्रत्येक व्यक्ती केवल कानून द्वारा ही शासित आहे| कानून ही सर्वोच्च हे कानून के ऊपर कोई संस्था या व्यक्ती विशेष नही है. कानून का उल्लंघन नही करेगा तब तक किसी भी व्यक्ति को दंडित नही किया जायेगा.

      कानून के समक्ष समानता-व्यक्तीची सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक हैसियत कुछ भी हो; कानून के सामने सब व्यक्ती समान होंगे|सबके लिए एक ही कानून है|चाहे आप कितने भी ऊंचे क्यों न हों, कानून आपके ऊपर है और कानून के समक्ष सभी समान हैं" पर आधारित है। यह इस बात पर जोर देता है कि सरकार सहित हर कोई, रैंक की परवाह किए बिना, समान कानूनों और अदालतों के अधीन होगा।कानून के समक्ष समानता या देश के सामान्य कानून के लिए सभी वर्गों के लिए समान अधीनता की आवश्यकता होती है। कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए. प्रशासन को कानून लागू करते समय धर्म, लिंग, जाति, वर्ण आदि का विचार किए बिना कानून के समक्ष सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान परिस्थितियों में समान अवसर और सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

      कानूनी भावना की प्रधानता- नागरी अधिकाराचा स्रोत कानून है जो न्यायिक निर्णय द्वारा लागू होता है| वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार न्यायिक निर्णय का परिणाम आहे डाइसी के अनुसार, ऐसे मानवाधिकारों की गारंटी कागजों पर देना पर्याप्त नहीं है, ये तभी प्रभावी होंगे जब इन्हें अदालतों में ठीक से लागू किया जा सके।अदालतें कानून के शासन को लागू करने वाली हैं और इसलिए उन्हें निष्पक्ष और बाहरी प्रभाव से मुक्त होना चाहिए। न्यायपालिका की स्वतंत्रता कानून के शासन के अस्तित्व के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।स्वतंत्रता के संरक्षक के रूप मे न्यायालय की भूमिका पर जोर दिया है|

      विधी का शासन और भारतीय संविधान-भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में डायसी की पहिली और दुसरी अवधारणा को मान्यता प्रदान की है तिसरी अवधारणा को भारत के संविधान की मान्यता प्राप्त नही है डायसीने न्यायालयीन फेसले को संविधान से अधिक महत्व दिया है जब की भारत ने संविधान द्वारा ही कानून का निर्माण किया गया है



 

 

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